samedi 21 décembre 2013

ज़िन्दगी





चंद फेंके हुए सिक्कों सी
बेहाल सी ज़िन्दगी,
लफ़्ज़ों के तीरों से
घायल सी ज़िन्दगी,
जलकर राख हुए कोयलों पर
धुंआ देती ज़िन्दगी।

धुआं देती गीली ज़िन्दगी,
दुल्हन कि विदाई पे छलकते आंसू
और बिलखते हुए बाप सी ज़िन्दगी।

बिलखते हुए बाप सी ज़िन्दगी,
बज चुकी शहनाई अब अकेली है ज़िन्दगी,
अस्मत कि क्या किस्मत देखो,
तार तार फटी है ज़िन्दगी।

तार तार फटी है ज़िन्दगी,
बेहाल बेबस बेकसक
रह गयी है ज़िन्दगी,

दुल्हन कि विदाई पे छलकते आंसू
और बिलखते हुए बाप सी ज़िन्दगी। 

धोबी घाट पर मैले कपड़ो कि तरह,
पिटी लुटी है ज़िन्दगी,
गरम लपटों कि वार से और
पानी कि बौछार से
काहिल सी है ज़िन्दगी,
और खिंची खिंची
मैले कुचैले नोट सी
फटेहाल सी
सेलोटेप लगी ज़िन्दगी।  

-- निशा

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