तुम वहाँ
और मैं यहाँ तनहा
बहती हुई ठंडी हवाएं ,
और कभी कभार नज़र आती हुई
एक आध मोटर कार.
एक हाथ में
नारंगी स्वाद का शीतल पेय
और दुसरे हाथ में एक ब्रेड.
किसी राह चलते भिखारी की तरह
बस स्टाप पर निठल्ले बैठे,
किसी तरह डबलरोटी निगलते
अपने गरम कपडों को सँभालते हुए,
तुम्हारी यादों का सफ़र.
याद आती है, अरे हाँ
आज तो तुम्हारा जन्मदिवस है
कदम चले जाते है
अनायास ही
टेलीफोन बूथ की तरफ
उस तरफ से आती है
तुम्हारी सुरीली पर
भरी हुई आवाज़
कहती है मैं अकेली हूँ
दुखी हूँ.
जाग उठती है मेरी लालसा,
तुम्हे यूं बाहों में भरने की
और दिलासा देने की
कि उदास न होना
लौट आऊंगा मैं जल्द ही
और उड़ा ले जाऊंगा तुम्हे
एक राजकुमार कि तरह
बरस जातें है आंसूं
और ख़तम हो जाता है टेलीफोन कार्ड
बोझिल कदम लौट आतें हैं
और मुझे बिस्तर तक पहुंचा जातें हैं.
खबर आती है तुम्हारे विवाह कि,
तुम जहां भी रहो खुश रहो,
यही दुआ है मेरी.
mercredi 6 mai 2009
Inscription à :
Publier les commentaires (Atom)
Aucun commentaire:
Enregistrer un commentaire