dimanche 26 avril 2009

विदाई

कभी कभार जब मैं अपनी
किताबों के साथ बैठता हूँ,
किसी सुहानी शाम की बहती
हवाओं की याद आती है
याद आती है नमकीन का वो पैकेट
और वो वेटिंग रूम .

याद आतीं हैं
ईर्ष्यापूर्ण निगाहें लोगों की,
और कुछ निगाहों की गुस्ताखियाँ
कहती कुछ भी सिर्फ बातें सुनने को
और फिर वही मेरी जुबां की गुस्ताखियाँ

खाने की टेबल पर
हमारे सरकते हाथ
और फिर उन टकराते
उँगलियों की बदमाशियां
मेरी बातों पर यूँ ही रक्तिम हुए गाल
और फिर गालों को देखकर
यूँ नज़रों की बदमाशियां.

फिर जब बजी सीटी,
और धीमे धीमे सरकने लगी ट्रेन,
उन आँखों से टपकते आंसुओं की बदहवासियाँ
और हाथ से छूटता हाथ,
ऊँगली से छूती ऊँगली,
और फिर बस हिलता हुआ हाथ
और दूर सरकती हुई ट्रेन.

lundi 13 avril 2009

प्रेयसी

वस्त्र पीले थे,
जब तुमने खोले थे दीवार,
परोसे थे मिठाई और फल,
बिठाया था श्यामासन के समक्ष.

वस्त्र पीले थे,
जब हाथ थामे थे मैंने तुम्हारे,
और तुमने अपने चुनरी के,
टकटकी बाँध के देखा था मुझे जो तुमने,
और शायद कहा था मन ही मन
कौन हो तुम.

वस्त्र पीले थे
जब हो रहे थे विदा,
और पूछा था मैंने
आया जो कोई राजकुमार
उठा ले जाए तुम्हे,
कहा था तुमने झुकती आँखों से
मिल गया है मुझे वो.

dimanche 12 avril 2009

आज

आज याद आती है बस तुम्हारी,
तुम्हारी हंसी तुम्हारा खिलखिलाना
और मेरी बातें सुनकर यूँ मुस्कुराना
डायरी के पन्नो पर लिखी कवितायें
और कविताओं जैसी तुम्हारी आँखें
याद आतीं हैं बहुत याद आतीं है.

आज याद आती है बस तुम्हारी,
उन शीतल दिनों में तुम्हारी हाथों की छुवन
मेरे केशराशियो के बीच तुम्हारी उंगलियाँ
और तुम्हारी गोद में लेटा मैं
और तुम्हारी जुल्फों की महक,
याद आती हैं बहुत याद आतीं हैं.

आज याद आती हैं तुम्हारी बातें,
तुम्हारा वो शरमाके नज़रें झुकाना,
और छुप जाना मेरी बाहों में
और कहना बस यूँ ही कट जाएँ
दिन, महीने, बरस, बस यूँ ही,
याद आतीं हैं बहुत याद आतीं हैं.

आज याद आतीं है तुम्हारी बातें,
लेकर हाथों में हाथ
जो बैठे थे हम उस निठल्ले आसमान के नीचे,
कहा था तुमने मुझसे अपनी शर्माती आखों से
की शायद कभी ये यादें न भूलेंगी
याद आतीं है बहुत याद आती हैं.

आज याद आतीं है बस तुम्हारी
उस थाली में पूडियां और सब्जी
और गरम जलेबियाँ
एक तरफ मैं और तुम
और एक तरफ ज़िन्दगी के सपने
याद आतीं हैं बहुत याद आतीं हैं.