vendredi 27 juillet 2012

বল তো প্রিয়ে





হাতে যখন তোমার হাথ,
চোখে চোখ মিলিয়ে কবে,
মুচকি হাসবে তুমি?
বল তো প্রিয়ে কবে মোকে ভালবাসবে তুমি?

মাথার চুলে নারকোল তেল,
গালে হাথে ভিকো ক্রীম,
কবে মাখিয়ে দেবে-গো তুমি?
বল তো প্রিয়ে কবে মোকে ভালবাসবে তুমি?

ডালে কখনো বেশি নুন,
কখনো ভাত-টি পোড়া,
দেখে চেখে জীভ কাটবে তুমি,
বল তো প্রিয়ে কবে মোকে ভালবাসবে তুমি?

শুয়ে আছ আজ নিঃশব্দে,
জ্বলে ধূনো, ধূপ চন্দন,
চোখ খুলে কবে আবার হাসবে তুমি?
বল তো প্রিয়ে কবে মোকে ভালবাসবে তুমি?

mardi 17 juillet 2012

कुछ दिन यों ज़िन्दगी






बारिश की मासूम बूँदें,
सरसराते पन्नो की आहट,
मिलकर बिखेर देतीं हैं,
मेरे दिवास्वप्न,
रह जाते हैं,
थरथराते होंठ,
और पंखे की आहट,
और इस तरह
कट जाती है,
कुछ दिन यों ज़िन्दगी |

कुछ पलों का साथ,
और पहाड़ों भर विरह,
कुछ तसवीरें,
और तश्तरी भर यादें,
दरवाजे पर धोबी की दस्तक,
तोड़ देती है दिवास्वप्न,
और कुछ इस तरह
कट जाती है कुछ दिन यों ज़िन्दगी ||

कुछ तेरी कहानी,
कुछ मेरे आंसू,
कुछ मेरी मुस्कराहट,
और तेरी हंसी,
कुछ अठखेलियों भरी यादों में,
कट जाती है,
कुछ दिन यों ज़िन्दगी ||