बड़ी देर से पापा,
इंतज़ार था मुझे आपका,
क्या बताऊँ आपको मैं,
परेशान हो गयी,
मेरी प्यारी घड़ी खो गयी ||
यादें बसीं थीं मेरी उसमें,
संजोये थे उसमे सपने,
पर फिर भी पापा,
न जाने कहाँ फुर्र सी हो गयी,
मेरी प्यारी सी घड़ी खो गयी ||
बज रहे थे उस दिन मेरे लिए,
ढोल, मंजीरे, खड़ताल,
सजी संवरी, सहमायी, घबराई सी थी मैं,
आपकी गुडिया तब डरपोक हो गयी,
बस वहीँ कहीं मेरी घड़ी खो गयी ||
हर सहेली मेरी पापा, अपने बाबुल को भूली,
पर पापा शायद मैं चढ़ गयी सूली,
खेल नहीं हैं यह गुड़ियों का,
क्या मेरी मां भी भूल गयी?
पापा मेरी प्यारी घड़ी खो गयी ||
पापा हर दिन, हर वार,
पीहर वालों के कटाक्षों की मार,
ज़िन्दगी शायद एक बोझ सी हो गयी,
पापा मेरी घड़ी खो गयी ||
जिद पर अड़े थे न तुम पापा?
अब देखो तुम्हारी बेटी फूट फूट के रोई,
भैया भी हैं अब रूठे,
भाभी ने अपने होठों पे सूई पिरोई,
ढूँढ दो पापा,
मेरी घड़ी है खोयी ||
ज़िन्दगी भर संग रहूंगी तुम्हारे पापा,
मेरे सर पे अपना हाथ सदा रखना पापा,
मेरी वह घड़ी खो गयी तो क्या हुआ,
मुझे दोबारा सूली पर चढाने की जिद न करना पापा ||