lundi 3 septembre 2007

निशा की बातें

सूनी सडकें और चांदनी रातें,
निशा से होती है निशा की बातें.

पौं फटी,
हुई सुबह,
हुई बरसातें,
हाथ में टूथब्रुश,
केशराशी अस्तव्यस्त,
ऐसे में ही होती हैं अकसर मुलाकातें,
निशा से होती है निशा की बातें.

चले पहन बरसाती,
हाथ में छाता,
चप्पलें रबड कीं,
उफ़ हाय चला भी नहीं जाता,
फिर भी सर रख बस कि खिडकी पर,
होती है बातें,
निशा से होती है निशा की बातें.

एक समुन्दर पन्नों का,
आंखों के सामने,
पन्नों पर कलम लगता है नाचने,
पर ऐसे में भी,
आमने सामने शायद,
होती है बातें,
निशा से होती है निशा की बातें.

फिर हुई शाम,
जब चले घर कि ओर,
फिर वही बस,
वही खिडकी,
और वहीं पर होतीं हैं मुलाकातें,
निशा से होती है निशा की बातें.

है सूनी सडकें,
और हैं चांदनी रातें,
पर अभी भी,
निशा से होती है निशा की बातें.

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